एक स्वादिष्ट गेहूं कठिया
०-- बाबूलाल दाहिया
कठिया हमारे बघेल खण्ड , बुन्देल खण्ड का प्राचीनतम गेहूं है। इसके दाने का रंग बादामी , बाल में गसी हुई दानों की पंक्ति और ऊपर लम्बा सा सेकुर होता है।इसे प्रकृति ने पूरी तरह वर्षा आधारित खेती के लिए बनाया था इसलिए आज भी अगर अधिक पानी लग जाय तो गेरुआ लगने की संभावना रहती है।
हमारे यहां की भू संरचना के अनुसार प्राचीन समय में दो तरह की भूमि थी।
1 --- ऊँचे खेर
2 ---भरायठ बांध
ऊँचाई बाले खेत में नवंम्बर तक नमी नही रह सकती थी तब ऐसे खेतो में बोने के लिए कठिया उपयुक्त था। बाकी गेंहू बोने का समय नवंम्बर के प्रथम सप्ताह से शुरू होता है। क्यों कि अन्य गेहूं के सुकुमार पौधे अक्टूबर के धूप और गर्मी में जम कर सूख जाते है पर कठिया इतना मजबूत होता है कि उसे आराम से 15 अक्टूबर से बोया जा सकता था।
शर्त यह थी कि थोड़ा गहरा बोया जाय। इसलिए उचहन में कठिया गेहूं और भरायठ में अन्य प्रकार के गेंहू बोये जाते थे। कठिया खाने में स्वादिष्ट इतना कि लड़कपन में खाई इसकी गुरतल रोटियों के स्वाद की आज तक अनुभूति बनी हुई थी।
इस पर एक पहेली नुमा लोक कथा है। प्रचीन समय में जब पूरी जुताई बैलों से होती थी तो छोटा दिन होने के कारण किसान खेत में ही दोपहर रोटी खाते थे और किसान पत्नी खेत जाकर वही रोटी पका बैगन ,टमाटर, घुइया, भिंडी आदि का भुर्ता तैयार करती थी।
कहते है एक महिला ने आटा गूथ कर रखा और भुर्ता भूजने लगी तभी एक कौआ आया और गूथे आटे की पिंडी में चोंच मार कुछ आटा नोच कर ले गया। महिला ने कौए को गाली बकते हुए कहा कि,
"न तो भ मोरे मइके क गोहू, नही त, दहिजरा तय का लइजाते ?"
अर्थातु -"- यह मेरे मइके का गेहूं नही है इसलिए नोच कर लेगया। वर्ना तू क्या लेजाता?"
देवर और पति भी ताजी ताजी रोटी खाने के लिए पहुँच गए थे। उसकी बात सुन वे हँसने लगे और देबर ने कहा कि " भाभी तुम हमेशा अपने मायके की प्रशंसा ही करती रहती हो? क्या तुम्हारे मायके का गेहूं कोई दूसरा है जिसे कौआ न ले जाता ?"
पति एवं देवर की माँ भी वही थी । उसने समझाया कि "बेटा तुम लोग नही जानते?बहू सही कह रही है। उसके मायके में कठिया गेहू होगा जो इतना लोचदार होता है कि अगर कौआ पिंडी को नोच कर लेने की कोशिश करता तो वह नोच कर न ले जा पाता ? य तो पूरी कि पूरी पिंडी जाती य बिल्कुल ही न जाता ? पर तुम लोग नया गेहूं खाने बाले भला क्या जानो उस कठिया गेहूं का स्वाद और गुण ?"
पर हम आज खेत देखने गए तो इनदिनों हमारे उसी कठिया गेहूं में बाले निकल आई हैं। अन्य गेहुओ से यह थोड़ा लेट पकता है।