शक्ति पर्व संदेश शक्ति पर्व पर भूल गये, शक्ति की ही उपासना।

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 शक्ति पर्व संदेश

शक्ति पर्व पर भूल गये, शक्ति की ही उपासना।

शक्तिशाली बनने का, किया कोई प्रयास ना ।।

बना लिया है नाचने, गाने का बस भेष।

बिन शक्ति के नहीं सुरक्षित, संस्कृति और देश ।।

शक्ति की पहचान नहीं है। स्थिती का कुछ भान नहीं है।

इससे तो यह लगता है। कि हमको कोई ज्ञान नहीं है ।।

पूर्वजों ने शक्ति का आधार, शस्त्र बतलाया है।

शस्त्र साधना का गुणगान, हर शास्त्रों ने गाया है ।।

बलवान बनने का गुण, आचार्यों ने सिखलाया है ।।

स्वयं राम व कृष्ण ने, बलवान बन बतलाया है ।।

वीरों को विजय मिलती है, केवल शक्ति के कारण।

अशक्ति को त्याग कर, शक्ति का करो वरण ।।

वरना जर जोरू जमीन सब, कोई कर लेगा हरण ।।

आज से ही करो साधना, शुरू करो पहला चरण ।।

स्त्र साधना से मुँह मोड़ना, यह तो एक भूल है।

देखो दिगम्बर भोले बाबा, उन पर भी त्रिशूल है ।।

शिव धनुष को उन्होंने बनाया, और बनाया भस्म कड़ा।

दुश्मन ने धारण कर लिया, संकट हो गया बहुत बड़ा ।।

बिना शस्त्र के शक्ति नहीं है, हर घटना से जान लो।

बनो शक्ति शाली शस्त्र धारी, उपदेशे को मान लो ।।

समाज को बॉधूंगा एक सूत्र में, ऐसा आज से ठान लो ।।

इसके अलावा पाखण्ड करना, जीवन का एक झूठ है।

समाज की कमजोरी का, बड़ा कारण हमारी फूट है ।।

हमारी हर एक गति विधियों को, संसार गौर से देखता।

हर काम ऐसे करो, जिससे बढ़े बस एकता ।।

अनेकता में एकता, ये नारा नहीं है खरा।

यूँ लगता है जैसे, खाली को कह दो भरा ।।

एक नहीं आस्था का केन्द्र तो, सब व्यर्थ हो जायेगा।

एकता का सपना भी, इस भीड़ में खो जायेगा ।।



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