नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट को हमें फिजिकल करना होगा। वर्चुअल सुनवाई को मानक बनाकर जारी नहीं रखा जा सकता। जहां तक नागरिकों को कोर्ट सुनवाई से रूबरू करवाना है तो इसके लिए लाइव स्ट्रीमिंग से उन्हें कोर्ट कार्रवाई में शामिल किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि स्वप्निल त्रिपाठी केस में दी गई व्यवस्था के अनुसार कोर्ट की लाइव स्ट्रीमिंग के बंदोबस्त किए जा रहे हैं। जस्टिस एलएन राव और बीआर गवई पीठ ने ये टिप्पणियां एक याचिका पर की जिसमें कहा गया था कि अदालतों की सुनवाई को हाईब्रिड रखा यानी फिजिकल और वर्चुअल दोनों रखा जाए। कोर्ट ने कहा कि हाइब्रिड सुनवाई संभव नहीं है क्योंकि यह नहीं हो सकता कि जज तो कोर्ट रूम में बैठकर और वकील पर्यटन स्थल पर बैठकर वीडियो कांफ्रेंसिंग से मुकदमे में पेश हों। पीठ ने कहा कि यह तर्क स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वर्चुअल सुनवाई ने लोगों की न्याय तक पहुंच को संवर्धित किया है। लोगों को खुली अदालत और खुले न्याय के लिए समझाना पड़ेगा। अदालती कार्यवाही की टेलीकास्ट अलग चीज है जबकि यह कहना कि कोविड से उबरने के बाद यह संस्थान बंद कर दिया जाए क्योंकि वर्चुअल सुनवाई अब मौलिक अधिकार है, एकदम अलग चीज है। कोर्ट ने कहा कि देखा है कि पिछले दो माह में लोगों को फिजिकल सुनवाई का हफ्ते में हफ्ते में दो दिन मौका दिया लेकिन भी वकील कोर्ट में पेश नहीं हुआ। क्योंकि यदि लोगों के पास विकल्प हो तो वह अपने आफिस में बहुत आराम से रहते हैं। कोर्ट ने कहा कि अदालती कार्रवाई के लाइव टेलीकास्ट के बारे में नियम विचाराधीन हैं और एक बार शुरु होने जाने से लोगों को सुनवाई का अधिकार घर बैठे मिल जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने तीन वर्ष पूर्व दिए फैसले में व्यवस्था दी थी कि संवैधानिक कोर्टों की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की जाए और रजिस्ट्री इसके लिए नियम बनाए। कोर्ट ने कहा कि पहले संवैधानिक अदालतों का लाइव टेलीकास्ट होगा उसके बाद निचली अदालतों में यह व्यवस्था लागू की जाएगी।