तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद से इस्लामिक स्टेट ने अफगानिस्तान में हिंसा में बढ़ोतरी की है। हालिया दिनों में इस्लामिक स्टेट ने दो बड़े धमाके किए हैं जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है और कई लोग बुरी तरह से घायल हैं। तालिबान ने वार्ता के दौरान अमेरिका को इस बात की गारंटी दी थी कि वह चरमपंथी गुटों को नियंत्रण में रखेगा। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है।
तालिबान और इस्लामिक स्टेट दोनों ही कट्टर इस्लाम को मानते हैं लेकिन इसके बावजूद दोनों संगठनों में भयंकर मतभेद हैं। इन्हीं मतभेदों के कारण ही इस्लामिक स्टेट लंबे वक्त से अल-कायदा का दुश्मन रहा है। इस्लामिक स्टेट तालिबान से भी अधिक क्रूर है। इस्लामिक स्टेट ने जब सीरिया और इराक में शासन किया तो तालिबान के कई लड़ाके भी इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने पहुंच गए थे।
तालिबान ने इस्लामिक स्टेट की क्षमताओं को कमतर आंका है और अफगानिस्तान के मामले में उसे ख़ारिज कर दिया है। तालिबान के कई नेताओं ने कई बार कहा है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट की जड़ें नहीं हैं। भले ही तालिबान ने इस्लामिक स्टेट को कमजोर माना हो लेकिन इस्लामिक स्टेट के खतरे की ताकत को नकारा नहीं जा सकता है। इस्लामिक स्टेट ने बड़े हमलों के साथ ही कई छोटे हमलों को भी अंजाम दिया है।