अमृतसर। शरीर पर लाल और सिल्वर गोटे वाला चोला..., सिर पर टोपी..., हाथ में छड़ी और पांवों में छम्म-छम्म घुंघरूओं की आवाज...। यह स्वरूप धर लंगूर बने बच्चों ने ढोल की थाप पर जय श्री राम, जय हनुमान के जयकारे बुलंद किए। वीरवार सुबह पहले नवरात्र को श्री दुर्ग्याणा तीर्थ के बड़ा हनुमान मंदिर में भक्तों की भीड़ के बीच यह नजारा देखने को मिल रहा है। सुबह लंगूरी बाणा धारण करने वाले बच्चों ने पवित्र सरोवर में स्नान किया और फिर विधिवत पूजन के साथ बाणा धारण किया। बड़ा हनुमान मंदिर में जाकर माथा टेका और उसके बाद मंदिर के प्रांगण में ढोल की थाप पर परिवार सहित खूब झूमे। मेले में इस बार पांच हजार बच्चे लंगूर बने हैं।
बच्चों और माता-पिता को करना पड़ता है कठिन नियमों का पालन
श्री दुर्ग्याणा तीर्थ स्थित श्री बड़ा हनुमान मंदिर में लंगूर बनाने की प्रथा सदियों पुरानी है। पूरे भारते में यह एकमात्र ऐसा तीर्थ है, जहां बच्चों को लंगूर बनाने की प्रथा है। नवरात्र में शुरु होने वाले लंगूर मेला दशहरा तक चलता है। इसमें लंगूर बनने वाला बच्चा तथा उनके माता-पिता को कठिन नियमों की पालना करते हुए प्रात: व सायं श्री बड़ा हनुमान मंदिर में नतमस्तक होने के लिए आना पड़ता है। इस बार मेले में पांच हजार बच्चें लंगूर बने है। श्री दुर्गयाणा मंदिर में अश्विन मास के नवरात्र में संतान प्राप्ति की कामना करने वाले दंपती श्री बड़ा हनुमान मंदिर में मन्नत मांग कर जाते हैं कि जब हमारे घर संतान की प्राप्ति होगी तब हम लाल चोला पहनाकर लंगूर बनाकर मंदिर में माथा टिकाने आएंगे।
लंगूर बनने के कड़े है नियम
मेले के प्रथम दिन पूजा अर्चना करके लंगूर बनाने की प्रक्रिया शुरु की जाती है। लंगूर बनने वाले बच्चे व उनके अभिभावकों को कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। वह भूमि पर सोते हैं। उन्हें चमड़े से बनी चीजों से दूर रहना पड़ता है, नंगे पांव रहना पड़ता है, चाकू से काटा हुआ व लहुसन, प्याज से परहेज रखना पड़ता है, दूसरों के घर के भीतर नही जाना न ही कुछ खाना, दशहरे के दिन वस्त्र श्री हनुमान मंदिर में उतारने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
बड़ा हनुमान मंदिर का अपना ही इतिहास
श्री दुर्ग्याणा तीर्थ में स्थित वेद कथा भवन से सटा श्री बड़ा हनुमान मंदिर अपने आप में इतिहास संजोए हुए है। यह मंदिर रामायण कालीन है। मंदिर में श्री हनुमान जी की बैठी अवस्था में मूर्ति है और यह मूर्ति श्री हनुमान जी द्वारा स्वयंभू मूर्ति है। जब लव व कुश ने श्री राम के अश्वमेघ यज्ञ घोड़े को रोक कर श्री राम जी की सत्ता को ललकारा था तो उनका सामना हनुमान जी से हुआ था। दोनों बच्चों के तेज और साहस को देखकर श्री हनुमान जी समझ गए थे कि यह बच्चें श्री राम की ही छवि है।
जब लव कुश ने उन्हें बांधना चाहा तो वह सहर्ष एक बड़े वट वृक्ष के साथ बैठ गए और मुस्कुराते हुए लवकुश के हाथों खुद को बंधवा लिया क्योंकि पवन स्वरूप श्री हनुमान जी को किसी बंधन में बांधना तो असंभव नहीं था। यह वट वृक्ष आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। युद्ध के पश्चात श्री राम जी नेस्वयं आकर हनुमान जी को बंधनमुक्त किया और आर्शीवाद दिया कि जिस तरह इस जगह उनका अपनी संतानों से मिलन हुआ है। उसी तरह यहां आकर जो प्राणी श्री हनुमान जी से संतान प्राप्ति की मन्नत करेगा। उसे संतान अवश्य ही प्राप्त होगी।