नई दिल्ली । कश्मीर में आम नागरिकों को लक्ष्य बनाकर की जा रही हत्या को आतंकियों की नई रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। जानकार इसे अभी 90 के दशक जैसी स्थिति बनाने की कोशिश से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, आतंकी गुटों की कमजोर स्थिति के मद्देनजर सुरक्षा बल इस संभावना से इनकार कर रहे हैं। ताजा घटनाओं को आतंकी गुटों के शीर्ष नेतृत्व के खात्मे की वजह से बौखलाहट और घाटी में जनसांख्यिकीय बदलाव की आशंका के मद्देनजर आम नागरिकों को निशाना बनाकर दहशत फैलाने की कोशिश और तालिबान के कब्जे के बाद उभरते कट्टरपंथ से जोड़कर देखा जा रहा है। जम्मू कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद का कहना है कि आतंकी आसान लक्ष्य तलाश रहे हैं। उनके सर्वोच्च नेतृत्व को घाटी में खत्म किया जा चुका है। वे सीधे सुरक्षाबलों का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में छोटे हथियारों के जरिए आम नागरिक को निशाना बनाया जा रहा है। हमलों का मकसद आम नागरिकों में दहशत फैलाना है, जिससे वे घाटी में आने का प्रयास न करें। उधर, बीएसएफ के पूर्व एडीजी पीके मिश्रा ने कहा कि दो तीन चीजें बहुत अहम हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद खुफिया रिपोर्ट में घाटी में कट्टरपंथ बढ़ने की आशंका जताई गई है। उसका असर दिखने लगा है। ऐसे गुट उत्साहित हैं। पूर्व एडीजी के मुताबिक दूसरा महत्वपूर्ण बिंदु ये है कि पलायन करके गए लोगों को घाटी मे वापस लाने की केंद्र सरकार की मुहिम के खिलाफ संदेश देने की कोशिश हो रही है। ऐसे लोगों को नौकरी पर रखने की योजना को भी जनसांख्यिकीय बदलाव की कोशिश बताकर आतंकी लक्षित हत्या कर रहे हैं। ताजा हत्या इसका साफ संकेत है। पूर्व एडीजी ने कहा कि जिस ईदगाह इलाके में शिक्षकों को मौत के घाट उतारा गया, वह 90 के दशक में हरकत उल अंसार का गढ़ हुआ करता था। उस इलाके में कमाण्डेन्ट के तौर पर मैंने खुद हरकत उल अंसार के घाटी में प्रमुख को मारा था। यहां आतंकी गुट लगातार नाम बदलकर सक्रिय रहे हैं। अभी भी द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) लश्कर का ही हिस्सा है। जानकारों का कहना है कि धारा 370 समाप्त होने के बाद केंद्र सरकार ने कई स्तरों पर शांति व विकास का संदेश दिया है। वहां बीडीसी, डीडीसी के चुनाव हुए हैं। आम लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिश के तहत विकास योजनाओं पर फोकस बढ़ा है। कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए कई नियम बनाए गए हैं। इनमें से एक उनकी अचल संपत्ति को कब्जे से मुक्त कराने और जमीन वापस दिलाने की मुहिम भी है।