दिल्ली | सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। इस चेतावनी का ख्याल हम अपने पूरे जीवन में रखते हैं लेकिन अपने घर में मासूम जिंदगियों को लेकर हम कई बार लापरवाह भी हो जाते हैं। शायद इसीलिए मासूम निम्मी जैसे गंभीर मामले देखने को मिलते हैं। मासूम निम्मी दो साल की बच्ची है जिसने खेल-खेल में एक नुकीली पेंसिल को निगल लिया। स्वाभाविक है कि इससे बच्ची की जान पर बन आई। चूंकि बच्ची दिल्ली निवासी है इसलिए समय रहते डॉक्टरों ने उसकी जान बचा भी ली। खुद डॉक्टर भी मानते हैं कि ऐसे मामलों में तत्परता बहुत जरुरी है। दूर-दूराज के इलाकों में बेहतर अस्पताल और अनुभवी डॉक्टरों की कमी के चलते मरीजों की जान पर बन आती है।
द्वारका स्थित आकाश अस्पताल में भर्ती दो वर्षीय निम्मी ने जब नुकीली पेंसिल निगल ली तो उसकी श्वासनली (विंडपाइप) पंचर हो गई थी। इसकी वजह से वह जो सांस ले रही थी, वह हवा रिसने लगी थी। घटना होने और नजदीकी अस्पताल पहुंचने में परिजनों को करीब चार घंटे का वक्त लग गया। इससे निम्मी के शरीर में सूजन आना शुरु हो गई।
डॉक्टरों का कहना है कि पेंसिल ने 0.5 सेंटीमीटर आकार का छेद कर दिया था और उसमें जो हवा रिस रही थी वह उसके शरीर में ही जमा हो रही थी। इसलिए सूजन आना भी स्वाभाविक था। अगर रिसाव बंद नहीं किया जाता और तो वह 2 से 3 घंटे और जीवित रह सकती थी। बहरहाल जाखों राखें साईंया, मार सके न कोई कहावत निम्मी के लिए यथार्थ में साबित भी हुई। बच्ची को तत्काल द्वारका स्थित आकाश अस्पताल लाया गया। यहां डॉ. समीर पुनिया ने जब बच्ची को देखा तो उसका चेहरा, गर्दन, छाती, पेट और आंख तक सूज चुकी थीं। डर था कहीं हार्ट और फेफड़ों को ऑब्सट्रक्टिव शॉक का खतरा न हो जाए। अगर ऐसा हुआ तो बच्ची को बचाना मुश्किल होता।
एलोपैथी के साथ प्रकृति पर भरोसा किया
राहत भरी सांस लेते हुए डॉ. पुनिया ने बताया कि सूजन के कारण बच्ची आंख तक नहीं खोल पा रही थी। परिजनों से बातचीत में हम पूरी घटना को तत्काल समझ गए थे लेकिन चिकित्सीय जगत में इस स्थिति का सामना केवल ऑपरेशन के जरिए ही किया जा सकता है। ऑपरेशन के दौरान छाती पर कट लगाना, फेफड़ों तक पहुंचना, छेद को बंद करना इत्यादि जटिल कार्य करना पड़ता लेकिन मासूम सी बच्ची का इतना बड़ा ऑपरेशन करना भी उचित नहीं था। इसलिए डॉक्टरों ने चिकित्सीय विज्ञान के अलावा प्रकृति पर भी भरोसा किया।
करिश्मा या विज्ञान: तीन दिन में चोट खुद ही ठीक
इसे करिश्मा भी कह सकते हैं या फिर मानव विज्ञान। आमतौर पर व्यस्कों में चोट भरने में सात दिन से भी अधिक समय लग जाता है लेकिन मासूम निम्मी की आंतरिक चोट महज तीन दिन में ठीक हो गई। वेंटिलेटर पर लेटी बच्ची की चोट हर दिन डॉक्टर ब्रोंकोस्कोपी के जरिए देख रहे थे। डॉ सैयद हसन ने बताया कि बच्चों में फेफड़े के टिश्यू 48 घंटों में खुद को ठीक कर सकते हैं। इसलिए निम्मी में तेजी से सुधार हुआ और पांचवें दिन उसे डिस्चार्ज कर दिया। बच्ची अब पहले से काफी स्वस्थ है और सूजन भी कम हो गई है।
डॉक्टर-जनता सबको मिला सबक
निम्मी की इस घटना ने न सिर्फ जनता बल्कि डॉक्टरों को भी एक सबक सिखाया है। आकाश अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उन्हें और बाकी डॉक्टरों को भी प्रकृति की शक्ति का उपयोग करना चाहिए। सर्जरी में शामिल होने में जोखिम शामिल होता, इसलिए सर्जरी न करके बस साधारण से उपाय से बच्ची के जीवन को बचाया जा सका। वहीं जनता को सबक मिलता है कि घर में छोटे बच्चों को लेकर खास एहतियात बरतने की जरुरत है। अगर कोई घटना होती भी है तो समय रहते बेहतर अस्पताल का विकल्प चुनना चाहिए।