यह पचगुड्डू है,आयुर्वेद में शिवलिंगी कहा जाता है
०-- बाबूलाल दाहिया
पचगुड्डू इसलिए कि औषधि के रूप में इसके 5 हरे कोमल फल एक साथ खाने का प्रावधान था। वर्ना इसे आयुर्वेद में शिवलिंगी कहा जाता है।जब तक गाँव मे चिकित्सा की आज जैसी सुविधाएं नही थी तब तक यह मलेरिया बुखार की मुफीत दवा मानी जाती थी।
मुझे याद है तब इसके पाँच फलों में नमक की छोटी - छोटी डली डाल आग में भून कर खा लेने से मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता था।
एक दवा इसके कच्चे पके फलो सहित बेल को सुखा और कूट कर चूर्ण के रूप में भी बनती थी जिससे तिजारी चौथिया बना मलेरिया भी ठीक हो जाता था। क्यो कि इसका सर्वांग कड़बा होता है।
प्रकृति का समन्वय देखिए कि मलेरिया अमूमन भादो क्वार के महीने में होता था और मलेरिया बुखार की यह मुफीत दबा पचगुड्डू भी उसी समय अपने आप बाड़ में जम कर फल जाती थी।
क्यो कि शुरू शुरू में बारिश तेज होती है तब गर्म धरती और बहते पानी मे मलेरिया उतपन्न करने वाले मच्छर अपने अंडे नही देते ? वह तब अंडे देते है जब बातावरण में नमी और गड्ढो में पानी भर जाता है ।
पर आज यह बेल पूरी तरह उपेक्षित है। क्यो कि इसका उपयोग अब पूरी तरह समाप्त है। बेचारी नई पीढ़ी भला क्या जाने कि इसके हमारे पुरखो के ऊपर क्या उपकार रहे है?
और यह भर नही हर जीव के कुछ सहयोगी है तो कुछ नियन्त्रक भी । इसलिए स्वच्छ और स्वस्थ धरती के लिए हर प्रकार की जैव विविधता का संरक्षण आवश्यक है।
क्योकि सभी जीव धारी और वनस्पतियां जाने अनजाने एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।