जयपुर। शादी के 30 दिनों के भीतर बाल विवाह की जानकारी प्रस्तुत करने के लिए राजस्थान विधानसभा द्वारा हाल ही में पारित विवाह अधिनियम, 2009 में संशोधन करने वाले एक विधेयक ने भाजपा और कांग्रेस के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। भाजपा ने सीएम अशोक गहलोत पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह "बाल विवाह की सामाजिक बुराई को मान्य करने" की सरकार है। इस बीच, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि सरकार का कदम जाति पंचों के आगे झुकने जैसा है। गहलोत सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है कि राजस्थान अनिवार्य विवाह पंजीकरण (संशोधन) विधेयक मौजूदा अनिवार्य विवाह पंजीकरण अधिनियम में केवल एक "तकनीकी परिवर्तन" कर रहा था, और इसका उद्देश्य अधिक पीड़ितों तक पहुंचना था। यह बाल विवाह को कानूनी नहीं बनाता है। क्योंकि जिला कलेक्टर अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। यह सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुरूप भी है जिसने विवाह पंजीकरण को अनिवार्य बनाया है।
भाजपा ने कांग्रेस पर बाल विवाह पर रोक लगाने वाले केंद्रीय कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया है। राज्य सरकार ने कहा कि बाल विवाह के पंजीकरण से उन्हें तेजी से रद्द करने में मदद मिलेगी और सरकार को अधिक पीड़ितों, विशेष रूप से विधवाओं तक पहुंचने में मदद मिलेगी। सरकार का तर्क है कि विवाह प्रमाण पत्र के अभाव में विधवा अक्सर सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाती है। सरकार ने यह भी कहा है कि पंजीकरण से राज्य को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित करके, पंजीकरण की संख्या और उसके अनुसरा चैनल कार्रवाई के आधार पर बाल विवाह की समस्या और मातृ एवं बाल स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को और अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने में मदद मिलेगी। इधर हालांकि, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि इससे लोगों के लिए बाल विवाह करना आसान हो जाएगा। महिलाओं के लिए इसे रद्द करने के लिए आगे आना और भी मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इसके लिए अब पंजीकरण के प्रमाण पत्र की आवश्यकता होगी।