तिथि विशेष :-
🐍 नागपंचमी :नाग हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा
नाग हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है. जहां एक तरफ नाग भगवान शंकर के आभूषण के रूप में उनके गले में लिपटे रहते हैं तो वहीं शिवजी का निर्गुण-निराकार रूप शिवलिंग भी सर्पों के साथ ही सजता है. भगवान विष्णु शेषनाग की शय्या पर ही शयन करते हैं. शेषनाग विष्णुजी की सेवा से कभी विमुख नहीं होते. मान्यता है कि जब-जब भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतार लेते हैं, तब-तब शेषनाग जी उनके साथ अवतरित होते है. रामावतार में लक्ष्मणजी तथा कृष्णावतार में बलराम जी के रूप में शेषनाग ने भी अवतार लिया था. पवित्र श्रावण (सावन) माह के शुक्ल पक्ष में पांचवें दिन को या पंचमी को नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी नागों को आनंद देने वाली तिथि है, इसलिए इसे ‘नागपंचमी‘ के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मातृ-शाप से नागलोक जलने लगा, तब नागों की दाह-पीड़ा श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन ही शांत हुई थी. इस कारण ‘नागपंचमी‘ पर्व लोकविख्यात हो गया l
हिंदी पंचांग के
अनुसार नाग पंचमी का त्योहार सावन मास की पंचमी तिथि को मानाया जाता है। नाग पंचमी के दिन प्रातःकाल नहा कर, सबसे पहले घर के दरवाजे पर मिट्टी, गोबर या गेरू से नाग देवता का चित्र अंकित करना चाहिए। फिर
नाग देवता दूर्वा,कुशा,फूल,अछत,जल और दूध चढ़ाना चाहिए। नाग देवता को सेवईं या
खीर का भोग लगाया जाता है। सांप की बांबी के पास दूध या खीर रख देना चाहिए। नाग
पंचमी पर नागों को दूध से नहलाने का विधान है न कि उन्हें दूध पिलाने का। दूध पीना
वैज्ञानिक रूप से सांपों के लिए नुकसान दायक होता है, इसलिए ऐसा नहीं करना चाहिए। इस दिन नाग देवता का दर्शन करना
शुभ माना जाता है। नाग पंचमी के दिन सांपों के संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए। इस
दिन अष्टनागों के इस मंत्र का जाप करना चाहिए।आज के दिन अष्ट नागों की पूजा प्रधान
रूप से की जाती है।
अष्टनागों के नाम है।- अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख।नाग पंचमी का पर्व सावन के मास का
एक प्रमुख पर्व है. श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व
मनाया जाता है। आज के दिन नाग देव के साथ
भगवान शिव की पूजा और रूद्राभिषेक करना शुभ माना गया है। नाग देवता की पूजा करने
से कालसर्प दोष दूर होता है। हिंदू धर्म में नाग पंचमी के पर्व को विशेष माना गया
है। इस दिन नाग देवता की विधि पूर्वक पूजा करने से सुख, समृद्धि में वृद्धि होती है। भय से मुक्ति मिलती है। ऐसा
माना जाता है। कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का अहंकार तोड़ा था। नाग
पंचमी पर नाग देवता को दूध से स्नान करने की परंपरा है। ऐसा करने से कालसर्प दोष
का भी प्रभाव कम होता है। मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता के साथ-साथ
भगवान शिव की पूजा करने से सर्पदंश का भय नहीं रहता साथ ही ग्रहों का प्रतिकूल असर
भी दूर होता है।एक तरफ तो नाग को देखते ही लोगों के होश उड़ जाते हैं। तो दूसरी ओर
लोग उनकी पूजा भी करते हैं। दरअसल भविष्य पुराण और दूसरे कई पुराणों में नागों को
देव रूप में बताया गया है। यह कहीं भगवान शिव के हार रूप में नजर आते है। तो कहीं
भगवान विष्णु की शैय्या रूप में। इतना ही नहीं सागर मंथन के समय नाग को महत्वपूर्ण
भूमिका में रस्सी रूप में दिखाया गया है। पुराणों में तो कई दिव्य नाग और नागलोक
तक का जिक्र किया गया है। इन्हीं कथाओं और मान्यताओं के कारण हिंदू धर्म में नागों
को देवताओं के समान पूजनीय बताया गया है और पंचमी तिथि को नाग देवता को समर्पित
किया गया है।नाग पंचमी के दिन नाग पूजा को लेकर भविष्य पुराण के पंचमी कल्प में एक
रोचक कथा मिलती है। कथा के अनुसार,
राजा परीक्षित के पुत्र
जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए के फैसला किया था। राजा
परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई थी इसलिए जनमेजय ने यज्ञ से संसार
के सभी सांपों की बलि चढ़ाने का निश्चिय किया।पाताल लोक में छिप गए तक्षक नाग
राजा जनमेजय का यज्ञ इतना शक्तिशाली था कि उसके प्रभाव से सभी सांप अपने आप खिंचे चले आते थे। तक्षक नाग इस यज्ञ के भय से पाताल लोक में जाकर छिप गए। राजा जनमेजय ने भी तक्षक नाग की मृत्यु के लिए यह यज्ञ शुरू किया थे लेकिन काफी देर बाद तक तक्षक नाग नहीं आए तब राजा ने ऋषियों और मुनियों यज्ञ में मंत्रों की शक्तियों को बढ़ाने को कहा, जिससे तक्षक नाग यज्ञ में आकर गिर जाएं।इस तरह बचे सभी नाग मंत्रों की वजह से तक्षक नाग यज्ञ की ओर खिंचे चले जा रहे थे। उन्होंने सभी देवताओं से जान बचाने का आग्रह किया। तब देवताओं के प्रयास से ऋषि जरत्कारु और नाग देवी मनसा के पुत्र आस्तिक मुनि नागों को हवन कुंड में सांपों को जलने से बचाने के लिए आगे आए। ब्रह्माजी के वरदान के कारण आस्तिक मुनि ने जनमेजय के यज्ञ का समाप्त करवाकर नागों के प्राण बचा लिए थे।इसलिए मनाया जाता है। नाग पंचमी का त्योहार बताया जाता है। कि जिस दिन ब्रह्माजी ने आस्तिक मुनि द्वारा नागों को बचाने का वरदान दिया था, उस दिन पंचमी तिथि थी। इसके साथ ही जिस दिन आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय के यज्ञ को समाप्त करवाकर नागों के प्राण बचाए थे उस दिन सावन की पंचमी तिथि थी। इसलिए सांपों को पंचमी तिथि अति प्रिय है। इसलिए पंचमी और सावन की पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार मनाने की परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है।