बाघों के संरक्षक और संवर्धन से रातापानी में बढ़ रही संख्या
20 से 25 किलोमीटर का टेरिटरी एरिया शिकार और सुरक्षा के पर्याप्त प्रबंध
अन्य अनुकूल परिस्थितियां इसलिए यहां बढ़ रहा बाघों का कुनबा,
मंडीदीप। ओबैदुल्लागंज के अंतर्गत आने वाला रातापानी अभयारण्य बाघों के सबसे खूबसूरत और सुरक्षित आशियानों में से एक है । इसके अलावा यहां बाघों के लिए पानी के पर्याप्त जल स्रोत हैं तो विचरण के लिए 20 से 25 किलोमीटर का टेरिटरी एरिया होने के साथ ही पेट भरने आसानी से शिकार भी मिल जाता है । इसके साथ ही सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध के साथ अन्य अनुकूल परिस्थितियां है इसलिए यहां बाघों की संख्या में साल दर साल बढ़ोतरी हो रही है। बाघ संरक्षण और संवर्धन के प्रयासों के चलते वर्ष 2018 की बाग जनगणना के मुकाबले यहां बाघों की संख्या में दोगुना वृद्धि होना बताई जा रही है। वर्ष 2018 में यहां 35 बाघ थे, जबकि अब वन अधिकारी 60 बाघ और 12 शावक होने का अनुमान व्यक्त कर रहे हैं ।
बता दें कि रातापानी सेंचुरी 972 वर्ग किलोमीटर एरिया में फैली हुई है जहां 60 बाघों के साथ 5 महीने के बाल शवक से लेकर 12 साल तक के 12 बाल शावक भी है।रातापानी अभ्यारण्य का क्षेत्र भोपाल, सीहोर और रायसेन जिले तक फैला हुआ है । यह जंगल घना होने के साथ ही इसमें वन्य प्राणियों के लिए पानी के पर्याप्त स्रोत है । इस कारण रातापानी अभ्यारण्य के बाघों का मूवमेंट भोपाल, सीहोर और रायसेन जिले के बाड़ी की सीमा तक बना हुआ है। यहां बाघों ने अभयारण्य के अलग-अलग क्षेत्रों में अपना बसेरा बना रखा है।
ओबैदुल्लागंज वन मंडल अधिकारी विजय कुमार कहते हैं कि बाघों के अनुकूल वातावरण, प्राकृतिक वास, पर्याप्त भोजन और सुरक्षा मिलने से बाघों की आबादी में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके साथ ही चुनौतियां भी बढ़ रहीं हैं। अब और अधिक मुस्तैदी से बाघों की सुरक्षा करना भी हमारी जिम्मेदारी है। वहीं रातापानी अधीक्षक प्रदीप त्रिपाठी का कहना है कि रातापानी के जंगल में जिस तेजी से बाघों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उससे अफसर और वन कर्मियों की जिम्मेदारी कई गुना अधिक बढ़ रही है। पिछले वर्षों में शिकार आदि पर प्रभावी अंकुश लगाने के साथ ग्रासलैंड, वेटलैंड के लिए उचित प्रबंधन किया गया है।बाघों को यहां सुरक्षा का आभास होता है उन्हे अपने बच्चो के लिए भी सुरक्षा महसूस होती है रातापानी में ऐसी कई जगह है जहां वे अपने बच्चो को उजागर नहीं करते है कम से कम एक साल तक बाघिन अपने बच्चो को छुपा कर रखती है उजागर नहीं करती वे जब तक उन्हें शिकार करना नहीं सिखाती । अभी शावक करीब 12 है शावको की गिनती नही होती है ।
शिकार और वन्य जीव अंग तस्करी है बड़ी चुनौती :
तस्कर यूं तो बाघों के रहने का पूरा पता रखते हैं लेकिन रातापानी अभ्यारण के नेशनल हाईवे 12 और 69से सटे होने के कारण यह चुनौती और अधिक बढ़ जाती है। वन्यजीव तस्करों का नेटवर्क सर्वव्यापी है। स्पष्ट है कि रातापानी सेंचुरी के बाघों के जीवन पर भी खतरे की तलवार लटकी हुई है।
रतापानी के बाघों को खतरा भी अधिक है। इसकी वजह रातापानी जंगल के अंदर मानवीय गतिविधियों का बढ़ना है। करीब 972 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले रातापानी बाघ परियोजना में करीब 32 गांव बसे हैं। वैसे तो इन सभी गांवों का विस्थापन रातापानी प्रशासन की प्राथमिकता में हैं, लेकिन प्रारंभ में इनमें से 10 गांवों का विस्थापन जरूरी है। वर्ष 2008 से 11 के बीच हुए सर्वे में इन 9 गांवों के 973 परिवारों को विस्थापन के लिए चयनित किया गया था। लेकिन विस्थापन की प्रक्रिया इतनी मंद गति से चल रही है कि इन्हे अब तक विस्थापित नहीं किया जा सका।
यहां मानव-बाघ संघर्ष भी है एक बड़ी समस्या :
इस सेंचुरी के जंगल में बाघ और मानवों का टकराव बढ़ रहा है। केंद्र सरकार बाघों को संरक्षित करने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर चला रही है। पिछले कुछ सालों में मानव और बाघों के बीच शुरू हुआ संघर्ष बढ़ती आबादी के साथ प्राकृतिक संपदा एवं जंगलों के दोहन और नियोजित विकास बाघों को अपना साम्राज्य छोड़ने के लिए विवश कर रहा है।
इन गांवों का होना है विस्थापन :
रातापानी अभ्यारण्य में टाइगरों के संरक्षण और उन्हें प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध कराने के लिए वन विभाग द्वारा 10 गांवों को विस्थापित करने की योजना बनाई है । इन गांवों में करीब 5 हजार से अधिक की आबादी निवास करती है, जिन्हें टाइगर रिजर्व बनने की स्थिति में विस्थापित करना आवश्यक होगा । रातापानी में आने वाले गांव झिरी बहेड़ा, जावरा मलखार, दे
लाबाड़ी, सुरईढाबा, पांझिर, नीलगढ़, धुनवानी और मंथार को विस्थापित किया जाना है ।
यह हैं संभावनाएं :
अगर रातापानी अभयारण्य में बाघों की संख्या लगातार बढ़ती है तो इससे काफी राजस्व मिलेगा। विशेषज्ञों का मानना है की रातापानी में बाघों की अधिक साइटिंग होगी तो पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। राजधानी के नजदीक और दोनों और नेशनल हाईवे लगे होने के कारण रातापानी वन्यजीव प्रेमियों और पर्यटकों की पसंद है। ऐसे में यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी और इस अभ्यारण्य का भी विकास होगा।