बिन खेती के पड़े हैं ,सत्तर प्रतिशत खेत।
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०-- बाबूलाल दाहिया
प्राचीन समय मे एक कहावत थी कि,
गोहू भा काहे ? असाढ़ के दुइ बाहे।
इस कहावत की अन्तर कथा यह है कि, एक गाँव मे सभी किसानों के खेत एक जैसे थे लेकिन एक किसान के खेत का गेहूं दूसरों से अच्छा था।
खेत घूमने गए किसानों ने अच्छे गेंहू की फसल वाले किसान से पूछा कि " किसान भाई तेरे खेत मे इतना अच्छा गेंहू क्यो है?"
उसने कहा कि " मैने आषाढ़ माह में अपने खेत की दो बार जुताई की थी। "
दरअसल आषाढ़ में जुताई करने से एक तो खेत के खर पतवार दब कर खाद बन जाते हैं दूसरा यह कि वर्षा का सारा पानी सोख लेने के कारण खेत मे काफी मात्रा में नमी संचित हो जाती है।
इस वर्ष प्रकृति ने जुताई के लिए भरपूर समय दिया है। इतना समय की आज 1 अगस्त तक कही कही तेज बारिश नही हुई। इसका लाभ उठा किसान चाहते तो अपने सभी खेतों में न सिर्फ जुताई कर लेते बल्कि झुरिया धान, तिल मूग ,उड़द य सोयाबीन सब कुछ बो सकते थे।
किन्तु इस वर्ष 70 -80 % खेत खाली पड़े हैं। क्यो कि आज की आधुनिक खेती पुरानी पेट की खेती नही है जिसको किसान अपने हल बैल एवं परम्परागत श्रम से संचालित करता था ?
बल्कि अब वह पूरी तरह शहर से संचालित होने वाली सेठ की खेती बन चुकी है और उस सेठ की खेती मे खाद ,बीज, नींदा नाशक ,कीट नाशक ,जुताई ,हारवेशटिंग आदि में 90% उपज से प्राप्त राशि विभिन्न माध्यम से विभिन्न प्रकार के सेठों के पास ही पहुँच जाती है।
आज डीजल प्रिट्रोल की महंगाई से सीधे जुताई ,हारवेशटिंग में प्रभाव तो पड़ा ही है? परोक्ष रूप से किसानी में आने वाली हर चीजे भी महंगी होगई है। जिसका परिणाम यह है कि खेती को अलाभ कारी मान किसान ने इस साल खेत मे जुताई ,बुबाई ही नही की।
अनाज सस्ता और उस अनुपात में हर चीज महंगी।उधर तेल के 35₹ वास्तविक मूल्य में प्रति लीटर केंद्र और राज्य सरकार 70-80 रुपये टैक्स वसूल कर रहीं हैं।
अब ऐसी स्थिति में खेती को ब्यावसाय मान ट्रैक्टर हार्वेस्टर से जुताई कटाई करने वाला नया किसान इतना ना समझ तो नही जो अलाभकारी खेती में अनावश्यक पूजी फसाए?
यही कारण है सारे ट्रेक्टर आराम की मुद्रा में दिख रहे हैं और खेतों में जमी हरी हरी घास को छुट्टा घूम रहे मवेसी चर रहे हैं। क्यो कि बैलों वाली खेती तो 20- 25 वर्ष से पूरी तरह समाप्त है जिसकी नई पीढ़ी तकनीक तक भूल गई है।