जरा इन मुफ्तके हलवाहों की करतूत भी तो देखिए?
पद्मभूषण विभूषित श्री बाबूलाल दहिया जी की कलम से
यह चित्र पिछले वर्ष का है । क्योकि आज के दिन तक अपनी दो सौ प्रकार की धान की लगवाई हो चुकी थी।
पर मैं आप सभी का ध्यान मुफ्त के हलवाहे इन केचुओं की ओर दिलाना चाहता हूं कि यह जन्तु कितना उपयोगी है?
क्यो कि जैसे ही धान लग चुकी थी यह सक्रिय होगए थे। यह जो यह चेचक के दाग जैसे खरदरे अर्बुद दिख रहे है यह केचुओं के कारण ही बन गए थे।
क्योकि 6-7 वर्षों से इस खेत मे किसी प्रकार का रसायन न पड़ने के कारण खेत मे अरबो खरबों के तादाद में केंचुए उतपन्न हो चुके है।
और आप जानते ही है कि एक केंचुआ ही अकेले 24 घण्टे में 8 टेढ़े मेढ़े छिद्र बनाता मिट्टी के कार्बनिक पदार्थो को खाकर मिट्टी में मिलाता रहता है।
गोबर की खाद तो इसका प्रिय भोजन ही है अस्तु चार दिन में ही रोपा लगे खेत की इतनी जुताई करदी थी कि सारा खेत खुरदरे अर्बुद की तरह दिखने लगा था ।
पर इनका यह हलवाहे गिरी का कार्य वर्षों इसी तरह अनवरत चलता रहे गा ।क्यो कि मिट्टी ही इनका भोजन है और मिट्टी का ही पाखाना करते है।