भारत रत्न डॉ बिधान चंद्र रॉय की याद में मनाते हैं डॉक्टर्स डे
महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के पुर्व मुख्यमंत्री,साल 1961 में डॉ बिधान चंद्र रॉय को देश का सर्वाेच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित डॉ् बिधान चंद्र रॉय की याद में मनाते हैं डॉक्टर्स डे
इस वक्त जब पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही है। तब डॉक्टरों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी कड़ी मेहनत को अनदेखा नहीं किया जा सकता। डॉक्टरों को समाज में भगवान का दर्जा प्राप्त है। अब जो लोग समाज और देश की सेवा में अपनी जान की चिंता किए बगैर दिन रात लग रहते हैं। उनके लिए साल का एक दिन तो समर्पित होना ही चाहिए। और इस एक दिन को देश भर मे डॉक्टर्स डे के रुप में मनाया जाता है। डॉक्टर्स डे मनाने के पीछे का उद्देश्य डॉक्टर्स के प्रति सहानुभूति रखते हुए उन्हें समाज में सम्मानित करना है। दुनिया में किसान और जवान के समान ही डॉक्टर की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। जिनके बिना समाज की कल्पना करना असंभव है। डॉक्टर रोगी को मौत के मुंह से भी निकालकर ले आते हैं। डॉक्टर्स आयुर्वेदिक, ऐलोपैथी, होम्योपैथी, यूनानी अलग अलग चिकित्सा पद्धतियों के जरिए मरीज को ठीक करने का प्रयास करते हैं। विश्वभर में कोरोना जैसी खतरनाक महामारी से जूझ रहे लोगों को ठीक करने में डॉक्टर्स अपनी भूमिका तत्परता से निभा रहे हैं, इसलिए उनका सम्मान किया जाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
1 जुलाई को क्यों मनाते हैं डॉक्टर्स डे
भारत में 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस यानी नेशनल डॉक्टर्स डे के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन देश के महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के पुर्व मुख्यमंत्री डॉ् बिधान चंद्र रॉय की याद में मनाया जाता है। उनका जन्म 1 जुलाई 1882 में हुआ था और इसी दिन साल 1962 में 80 वर्ष की उम्र उनका निधन हो गया था। बिधान चंद्र रॉय की गिनती देश के महान चिकित्सकों में की जाती है। इतना ही नहीं विश्वभर में चिकित्सा के क्षेत्र में उनका अहम योगदान रहा है।
कौन थे बिधान चंद्र रॉय
बिधान चंद्र रॉय का जन्म बिहार के पटना शहर में 1जुलाई 1982 में हुआ था। उनके पिता का नाम प्रकाश चंद्र था। बिधान चंद्र रॉय अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उन्होंने अपनी मेडिकल की पढ़ाई कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से पूरी की। इसके बाद उन्होंने लंदन से थ्त्ब्ै और डत्ब्च् उपाधि प्राप्त की।
रिकॉर्ड्स की माने तो भारतीय होने के कारण पहले उन्हें लंदन के अस्पताल में दाखिला नहीं दिया गया था, पर डॉक्टर बिधान हिम्मत हारने वालों में से नहीं थे और लगातार आवेदन करते रहे। आखिरकार 30वीं बार में उनका आवेदन पत्र स्वीकार कर लिया गया। डॉक्टर रॉय इतने मेधावी थे कि दो साल में ही उन्होंने एक साथ फिजिशियन और सर्जन की डिग्री हासिल कर ली। 1911 में बिधान चंद्र रॉय भारत वापस आ गए और सियालदाह में सरकारी डॉक्टर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की।
स्वतंत्रता सेनानी थे डॉ बिधान चंद्र रॉय
बिधान चंद्र रॉय डॉक्टर के साथ साथ समाजसेवीए आंदोलनकारी, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता भी थे। देश के स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। गांधी जी के आग्रह पर उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और और इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी में आ गए। प्रफुल चंद्र घोष के बाद 1948 में वे बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री बने और 1 जुलाई 1962 में अपने निधन तक वो इस पद पर बने रहे। उन्हें पश्चिम बंगाल का आर्किटेक्ट भी माना जाता है।
डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय के बारे में एक बात और बहुत प्रचिलित है की वो जो भी आय अर्जित करते थे वो सब दान कर दिया करते थे। उनकी इसी निस्वार्थ भाव से समाज और देश की सेवा करने के जज्बे को सम्मान और श्रद्धांजलि देने के लिए 1 जुलाई को उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि को नेशनल डॉक्टर्स डे के रूप में मनाया जाता है। विधानचंद्र राय लोगों के लिए एक रोल मॉडल हैं। आजादी के आंदोलन के समय उन्होंने घायलों और पीड़ितों की निस्वार्थ भाव से सेवा की थी।
आभार सहित!