यह ढाई किलो का आम नूरजहां है
०-- बाबूलाल दाहिया
धार जिले की इस आम प्रजाति के अब मात्र चार पाँच पौधे ही शेष है । इसलिए विलुप्तता का खतरा स्पस्ट दिख रहा है। वैसेअकेले नूरजहां भर नही अब तो तमाम देसी किस्मो को विलुप्तता का खतरा है ।
और जैव विविधता की दृष्टि से अगर धार जिले के इस 2.5 किलो बाले को संरक्षण की जरूरत है तो हमारे गाँव की उस ठिर्री प्रजाति को भी जो मात्र 25-30 ग्रांम वजन की होगी ।
क्योंकि इसमे अगर 100 - 200 आम फलेगे तो ठिर्री में कई हजार। और बचाना जरूरी इसलिए है कि यह पुराने पेड़ अब गिरते तथा सूखते जा रहे है।
प्राचीन समय मे लोग जैव बिबिधता का अर्थ भले न जानते रहे हो पर उसका महत्व जानते थे। क्यो कि उनका उद्देश्य आम बेचना नही बल्कि तरह तरह के आम बगीचे में लगाकर परिवार समेत खुद खाना और ग्राम बासियों , नात रिस्तेदारो को खिलाना रहता था ।
यही कारण है कि अपने बगीचे में अगर सेदुरा , लोढामा, बतासी , खिरामा, बम्बई ,लँगड़ा , मालदहा , तोतापरी जैसी किस्में लगाते थे तो ठिर्री , अथनहा , समनहा आदि भी ।
क्योकि सब का अपना अलग अलग महत्व था। पर अब तो अगर बौनी जाति का नीलम लगाए गे तो सैकड़ो पेड़ उसी उसी के जिससे एक साथ बाजार भेजने में सहूलियत हो।